Friday 8 May 2015

माँ मेरे जीवन का संबल है .....

भूख का एहसास होने से पहले खाना खिलाती माँ ....नींद के एहसास से पहले अपना आँचल बिछाती माँ .... चोट मुझे लगती और दर्द से कराह उठती माँ ... उँगलियाँ थामकर टेड़े – मेढ़े क ,, ग के व्यंजन ठीक कराती माँ ....अपनी आँखों से दुनिया को देखने का हुनर सिखाती माँ ......काली कोयल और हरे तोते से रंगों की पहचान कराती माँ .... खाने को न कहने पर रोटी की जगह आंटे की चिड़िया पकाती माँ .... अपनी बच्ची के सामने तनिक भी खतरे को भाँपकर हिमालय पर्वत की तरह आगे खड़ी हो जाती माँ .... अन्याय और असत्य के सामने कभी न झुकने का पाठ पढ़ाती माँ ..... मेरी बेटी तो रानी है कहकर गर्व से सर उठाती माँ ...और फिर आशीष भरे हाथो से मन को सहलाती माँ ..... माँ .... जब आँखें मूंदती हूँ तो एक – एक करके माँ के सभी रूप साकार होकर सामने आते हैं ...मन करुणा और शक्ति के मीलित भाव से भर उठता है .... माँ मेरे जीवन का संबल है ... अपने शरीर के अंश से मेरे अस्तित्व का निर्माण किया है माँ ने .... ज्ञान ...शक्ति...साहस ...त्याग ...बलिदान ...दया ...ममता ...जैसे उर्वरकों से पोषा है मुझे .... । मेरे लिए माँ की महत्ता और भी अधिक रही क्योंकि मेरी माँ ने माँ और पिता दोनों का किरदार निभाया ....बखूबी दोनों जिम्मेदारियाँ निभाई । माँ बनकर मुझमे प्रेम और करुणा को पोषा ...तो पिता बनकर मुझे सारी दुनिया के सामने आत्म विश्वास के साथ खड़ा रहना सिखाया ...भीषण झंझावातों में भी अडिग होकर हर मुसीबत से लड़ना सिखाया ... आज मैं जो भी हूँ ...जैसी भी हूँ ...अपनी माँ की तरासी हुई एक प्रतिमूर्ति मात्र हूँ .... आज मात्र दिवस के अवसर पर मैं अपने जीवन की समस्त उपलब्धियों को अपनी माँ के चरणों में अर्पित करती हूँ ....माँ ...माँ ...तुम्ही मेरी जन्म दाता हो ... तुम्ही मेरी ...विधाता हो .... माँ तुम्ही मेरा ईश्वर हो ...जो शीश झुकाने से पहले ही सारी दुवाएं सुन लेती हो .... हाँ ...माँ ...तुम्ही मेरा ईश्वर हो ..... ।


अंजलि पंडित । 

Friday 6 March 2015

बचाओ इस देश को विभीषण से ........

आपने वो कहावत तो सुनी होगी घर का भेदी लंका ढावे ̉ रावण ने चाहे जितने ही 
पाप किए हो जितने अत्याचार किए हो ....पर उसका विनाश कभी न होता यदि उसका अपना भाई विभीषण उसका भेद प्रभु श्री राम से न बताता , यानी लंका के विनाश का कारण कौन था – विभीषण ...अब बताइए एक विभीषण ने लंकाधिपति रावण जिसके दस शीश, बीस भुजाए थी ...उसका विनाश करवा दिया तो फिर  सोचिए इस समाज का क्या हाल होगा जहा हर घर मे एक विभीषण है या फिर ऐसा कहा जाए कि हर भाई दूसरे भाई के लिए विभीषण है तो गलत नहीं होगा क्योंकि आज समाज मे यही तो हो रहा है यदि एक भाई थोड़ा आगे निकल गया तो दूसरा भाई उसे मात देने के लिए ऐसे लोगों को दोस्ती करने के लिए ढूंढता है जिससे कि वह उसके दुश्मन के साथ मिलकर आपने ...भाई को हरा सके इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि जो देश कभी विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाता था दूसरे देशों को, जिसका भाई चारा मिसाल था सबके लिए ...आज वह देश विभीषणों के कारण आतंकवाद का शिकार हो गया है क्योंकि घरो के अलावा कुछ ऐसे विभीषण भी है जो देश के लिए कलंक है,  जो रहते तो हिंदुस्तान में है लेकिन चंद रुपयो के खातिर अपने ही देश की जासूसी करते है पड़ोसी मुल्कों के भेदिए बन बैठे है वो जो अपने ही भाइयों का खून बहा रहे हैं  .....इसलिए आज आवश्यकता रावण से अधिक विभीषणों से देश को बचाने की है ...बचाइए इस देश को विभीषणों से और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब आप विभीषण न बने .....

                                           

अंजलि पंडित । 

Tuesday 3 March 2015

सिर्फ बाहर ही नहीं अपने अंदर भी रंग भरें

गलियों में उड़ता गुलाल ... रंग बिरंगी पिचकारियाँ .... तरह-तरह के पकवानों और गुझिया मिठाई की खुशबू .... मस्ती के रंगों में सराबोर लोग .... हर तरफ उठती पानी की फुहारें ....और सभी के मन में अद्भुत उमंग , यह होली का त्योहार है ही ऐसा जिसमे हर व्यक्ति अपने गमों को भूलकर झूम उठता है । सभी के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान होती है , रंगों के साथ खुशियाँ भी छलकती हैं ... और पता है ऐसा क्यों होता है ! होली के दिन लोग इतने खुश इसलिए होते हैं क्योंकि वे खुशियों के रंग में रंगे होते हैं .... उनके मन में प्रेम भाव होता है , उत्साह होता है .... होली के दिन हम सभी एक दूसरे को लाल-गुलाबी , नीले-पीले और न जाने किन-किन रंगों में रंगते हैं , और हमारी दुनिया रंगीन हो जाती है । इन बाहरी रंगों के साथ-साथ अपने अंदर ... यानि अपने मन ... अपनी आत्मा में भी कुछ रंग भरें , जैसे प्रेम का रंग ... सदभावना का रंग .... विश्वास का रंग ... त्याग का रंग ... इससे हमारा जीवन हमेशा के लिए रंगों भरा और सुखमय हो जाएगा । हर दिन हमारे लिए होली और हर रात दिवाली होगी .... हर दिन की सुबह मुस्कान बिखेरती हुई आएगी .... हम हर दिन खुशियों को गले लगाएंगे .... तो आने वाली इस होली को मनाइए " मन की होली .... मन से होली " ...... ।
अंजलि पंडित