भूख का एहसास होने से पहले खाना खिलाती माँ ....नींद के एहसास से पहले
अपना आँचल बिछाती माँ .... चोट मुझे लगती और दर्द से कराह उठती माँ ... उँगलियाँ
थामकर टेड़े – मेढ़े क , ख , ग के व्यंजन ठीक कराती माँ ....अपनी आँखों से दुनिया को
देखने का हुनर सिखाती माँ ......काली कोयल और हरे तोते से रंगों की पहचान कराती माँ .... खाने को न
कहने पर रोटी की जगह आंटे की चिड़िया पकाती माँ .... अपनी बच्ची के सामने तनिक भी
खतरे को भाँपकर हिमालय पर्वत की तरह आगे खड़ी हो जाती माँ .... अन्याय और असत्य के
सामने कभी न झुकने का पाठ पढ़ाती माँ ..... “ मेरी बेटी तो रानी
है “ कहकर गर्व से सर उठाती माँ ...और फिर आशीष भरे हाथो से
मन को सहलाती माँ ..... माँ .... जब आँखें मूंदती हूँ तो एक – एक करके माँ के सभी
रूप साकार होकर सामने आते हैं ...मन करुणा और शक्ति के मीलित भाव से भर उठता है .... “ माँ मेरे जीवन का संबल है ” ... अपने शरीर के
अंश से मेरे अस्तित्व का निर्माण किया है माँ ने .... ज्ञान ...शक्ति...साहस
...त्याग ...बलिदान ...दया ...ममता ...जैसे उर्वरकों से पोषा है
मुझे .... । मेरे लिए माँ की महत्ता और भी अधिक रही क्योंकि मेरी माँ ने ‘ माँ ’ और ‘ पिता ‘ दोनों का किरदार निभाया ....बखूबी दोनों जिम्मेदारियाँ
निभाई । माँ बनकर मुझमे प्रेम और करुणा को पोषा ...तो पिता बनकर मुझे सारी
दुनिया के सामने आत्म विश्वास के साथ खड़ा रहना सिखाया ...भीषण झंझावातों में भी
अडिग होकर हर मुसीबत से लड़ना सिखाया ... आज मैं जो भी हूँ ...जैसी भी हूँ ...अपनी माँ
की तरासी हुई एक प्रतिमूर्ति मात्र हूँ .... आज मात्र दिवस के अवसर पर मैं अपने
जीवन की समस्त उपलब्धियों को अपनी माँ के चरणों में अर्पित करती हूँ ....माँ ...माँ
...तुम्ही मेरी जन्म दाता हो ... तुम्ही मेरी ...विधाता हो .... माँ
तुम्ही मेरा ईश्वर हो ...जो शीश झुकाने से पहले ही सारी दुवाएं सुन लेती हो .... हाँ ...माँ ...तुम्ही मेरा ईश्वर हो .....
।
अंजलि पंडित ।