Tuesday 9 July 2013

अपने आप को पहचाने....!

एक अल्हण सा पत्थर ..... जिसमें कुछ भी दिखाई नहीं देता , जिसका न तो कोई रूप होता है .... न कोई अस्तित्व , जिसकी कोई पहचान नहीं होती ... लेकिन यदि किसी मूर्तिकार की नज़र उस पर पड़ जाए तो फिर वह पत्थर.... पत्थर नहीं रहता , वह माँ भगवती की मूर्ति हो सकता है .... किसी की प्रतिमा बन सकता है , फूलदान बन सकता है , या फिर कोई ऐसा सजावटी सामान जिसे आप बड़े प्यार से अपने घरों में सजाते हैं । जब आप किसी रास्ते पर चल रहे होते हैं , कोई पत्थर आपके पैर से टकराता है .... उस समय क्या आपको यह अंदाजा होता है कि इस पत्थर से आप प्यार कर सकते हैं .... नहीं न..... पर यह तो उस मूर्तिकार की महानता होती है जो उसे रूप, रंग , आकार देता है । ठीक इसी तरह मनुष्य भी एक पत्थर की भांति ही होता है .... उसके अंदर भी एक सुंदर आकार और व्यक्तित्व लेने की क्षमता होती है ,  आवश्यकता होती है तो बस... उसे तरासने वाले की , उस धूल को साफ करने की जिसके जमे होने के कारण उसकी चमक धुंधली है ..... । अपने स्वयं से अच्छा मूर्तिकार आपके लिए कोई दूसरा नहीं हो सकता , आप अपने आपको जैसा चाहें वैसा आकार दे सकते हैं ... जिस साँचे में चाहें ढाल सकते हैं .... केवल आपको यह समझना होगा कि आपका असली स्वरूप कैसा होना चाहिए .....?.... ऐसा स्वरूप..... जो आपके व्यक्तित्व को निखार सके , आपके समाज ...आपके राष्ट्र को निखार सके । अपने आपको पहचानने में... अपनी गरिमा बनाने में आपको समय  अवश्य लगेगा , क्योंकि सोने को भी मन को लुभाने वाला आकार लेने के लिए आग में गलना ही पड़ता है ..... हीरे की कीमत तभी होती है जब वह तरासा जाता है .... और इसमे समय तो लगता ही है , पर हर कोई उसे पाने के लिए लालायित हो जाता है । कमल का फूल भी राष्ट्रीय फूल .... यानि की राष्ट्र का गौरव इसलिए है क्योंकि कीचड़ में निकलने के बाद भी वह बहुत खूबसूरत होता है । 
कहने का अभिप्राय मात्र इतना ही है कि हम अपने आपको पहचाने , और उसी के अनुसार स्वयं को आकार दें । ऐसा नहीं होना चाहिए कि "वह ऐसा कर रहा है इसलिए मैं भी ऐसा करूंगा " या " मैं ऐसा नहीं बन सकता इसलिए मैं ये बनूँगा "  हमे अपनी ज़िंदगी .... अपनी उम्मीदों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए , इसलिये अपने आपको तरासें..... और अपने आपसे जुडने वाले लोगों को भी सही दिशा देने में मदद करें .... तभी हम पर सभी को गर्व होगा ...... 

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