Wednesday 23 April 2014

जिन खोजा तिन पाइयाँ ......

एक दिन ऐसा था जब हम सभी मनुष्य भी जानवरों की तरह चार पैरों पर चलते थे , फिर उनमें से कुछ ने प्रयास किया .......अपनी हिम्मत दिखाई और दो पैरों पर खड़े होकर चलने लगे ...और जिन्होंने नहीं किया वो आज भी जानवर हैं , यानी चार पैरों पर चलने वाले ........... जो दो पैरों पर चलने लगे उनमें से कुछ ने और प्रयास किए ...वस्त्र बनाए ....आधुनिक उपकरण बनाए .....उनका उपयोग करना सीखा और बुद्धिमान मानव बन गए और जिन्होंने नहीं किया वो पिछड़े ही रह गए ..........  अब जो बुद्धिमान मनुष्य थे उनमें से कुछ लोगों ने अपना जीवन यापन करना सीखा , अपनी जीविका के साधन खोजे , एक सभ्य समाज का निर्माण किया ....और कुछ लोगों ने बिना कुछ किए ...बिना हाथ - पैर चलाये दूसरों की  कमाई पर जीना शुरू किया और वो बन गए " महमानव" यानी कि समाज के हितैषी ......अब भाई ये तो अपनी-अपनी खोज है , जिसने जो खोजा उसने वो पाया ....अब इसमे हम किसी को दोष दें तो वो ...तो ...बेकार कि बात हुई न ...!
...अब देखिये किसी ने अपने लिए मजदूरी खोजी ...तो किसी ने मालकीयत , अगर कुछ लोगों ने दूसरों को लूटना सीखा तो बाकी लोगों ने भी स्वयं को लुटवाना मंजूर किया .......उन्होने अपने लिए यही खोजा है , तो फिर फिक्र किस बात की ....! चाहे कोई सब कुछ लूट कर ले जाए वो अपने हित के लिए कहाँ खड़े होंगे ....? ... वो नींद से कब जागने वाले हैं .......!
अच्छा मेरी समझ में एक बात नहीं आती कि लोग नेताओं को बुरा क्यों कहते हैं ...? ....इसने ये घोटाला किया ...उसने वो भृष्टाचार किया ....इसने इतने करोण रुपयों का गबन किया ..... यह बात उस वक्त याद नहीं आती जब आप सज्जन पुरुष हजार-हजार के नोट लपेट कर चुप-चाप धीरे से साहब जी की जेब पर दल देते हैं ....और बेशर्मी तो देखिये मुस्कुराते भी हैं देते समय .....अब हजार लोगों का हजार-हजार , करोण बन गया तो साहब जी क्या करें .....? मुझे तो बड़ा तरस आता है उन पर ......क्या किया जाए किसी ने देना सीखा .... तो किसी ने लेना .....तो हमेशा लेने वाला ही कटघरे में क्यों खड़ा किया जाए ......? ....उसे ही दोषी क्यों ठहराया जाए ..... जब आप महाशय पाँच मिनट लाइन में खड़े होने से गार्ड को सौ रुपये देकर पहले जाना गर्व की बात समझते हैं ........ तो फिर अगर ये गर्व है ....तो लेने वाला दोषी कैसे हुआ ..... यही तो है अपनी  - अपनी मानसिकता ..... अपनी - अपनी खोज ......और यही है जिन खोजा तिन पाइयाँ का नियम भी ..... जब अपने ही खोजने से सब मिलता है तो यह कैसा समाज हमने खोज लिया है अपने लिए .....क्या यह विचार करने की बात नहीं है ...... और अगर सब विचार करते हैं तो फिर ऐसी खोज क्यों नहीं करते जो स्वयं के लिए भी हितकर हो और ....दूसरों के लिए भी ..... जो हमे भी उन्नति दे ....और हमारे समाज को भी , हमारे देश को भी .....इस सम्पूर्ण सृष्टि को भी ..... 

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